इसे महज को-इन्सिडेन्स ही कहिए। हाँ, निहायत अपने किसी निजी ऐंगिल से, अगर आपको इसमें फ़ोर्थ पॉकेट दिख जाये तो आपकी इस महारत को सलाम! मैं तो बस, फुरसत में बैठा सीधा-सच्चा फ़र्स्ट पॉकेट शॉट खेल रहा हूँ। Continue reading
August 2010 archive
Aug 22 2010
बहुतेरे आँगन, बहुतेरे नाम!
वीवीआईपी बंगलों-कोठियों के आँगनों में ‘नाम’ होने के किस्से जब आम हो जाते हैं तो इन ‘नाम-चीन’ खसुल-खासों की चाँदी तो कटती ही है, कोठी मालिकों को भी अपनी-अपनी पौ बारह करने की गारण्टी मिलती है। Continue reading
Aug 15 2010
हाली की नहीं, उसकी घरवाली की मर्जी
सूबे की कैपिटल में माल-गुजार और हाली के बीच के रिश्ते तो यथावत् हैं। हाँ, हाली और उसकी घरवाली के बीच के ईक्वेशन्स जरूर बदल गये हैं। बिल्कुल वैसे ही, जैसे विन्ध्याचल की वादियों में राजा-महाराजाओं के अटे पड़े किस्सों में सुनकर आया था। Continue reading
Aug 08 2010
अण्डे-मुर्गी का ग्रेट इण्डियन कन्फ़्यूजन
राम के ‘होने’ में ही लखन के होने की कुंजी है। क्योंकि, किसी में यह दावा करने की हिम्मत नहीं कि अनुज के ‘लक्ष्मण’ होने में ही अग्रज के ‘राम’ होने की कुंजी है। यही मेरी चिन्ता थी। Continue reading
Aug 01 2010
हमारी ब्राण्ड न्यू पहचान
हम पर इन्वेस्ट किया जा सकता है। एक-दम बे-खौफ़। अपनी यह नयी इण्टर-नेशनल पहचान कायम करने में सफल हो ही गये हैं हम। कथनी के क्यूट से मुखौटे के पीछे करनी के भयावह चेहरे को छिपा पाने की एक-दम अन-पैरेलल पहचान! Continue reading