सारी ‘बचकानी’ डायलॉग-बाजी को दर किनार कर अर्जुन कैम्प ने राहुल के दो डायलॉग्स को ‘सीरियसली’ उछाल दिया है। पहला है — अब पेट से नहीं, ‘पेटी’ से पैदा होंगे नेता! जबकि दूसरा है — कांग्रेस को ‘अल्प-संख्यक’ नेता चाहिए! Continue reading
October 2010 archive
Oct 24 2010
केशव, कहि ना जाइ का कहिए
शायद, ‘बाबा’ गांधी के खिलाफ़ ‘बापू’ गांधी की ओर पार्टी के झुक रहे मजबूरी के पलड़े का असर हो — बुरा मत बोलो! कुछ तो पेंच है। सारा ठीकरा किताब के ही मत्थे फोड़ना था तो वह तो बाजार में पहले से मौजूद थी। Continue reading
Oct 17 2010
भगवान बचाये इस गुनाह बे-लज्जत से
मधु-मक्खी के इस छत्ते से आ रही तेज भिन-भिनाहट को सुन और समझ पाने वाले बताते हैं कि मन्त्री जी निराश हो गये हैं। ऐसे मन्त्री बनकर बैठने से तो बेहतर है कि यह टोपी किसी और को पहनने के लिए दे दी जाये। Continue reading
Oct 10 2010
सबको सन्मति से भगवान
बस, सुबह से बन्दर और आदमी में आये इसी फ़र्क की उधेड़-बुन में डूबा हुआ हूँ — बन्दर से विकसित हुआ माना जाने वाला आदमी कब बन्दर से सबक लेगा? कब समझेगा आइने में खुद अपनी शक़ल-अकल को परखने का? इसी उधेड़-बुन में गांधी का यह प्रिय भजन कलेजे में हूक ले रहा है। Continue reading
Oct 03 2010
हुइहै वही जो राम रचि राखा
सब समझ जाने से भी अदना आम आदमी कर क्या लेगा? उसका तो बस, एक ही आसरा है। अन-डिस्प्यूटेड। न पॉलिटिकल, न सोशल, न रिलीजस। लीगल भी नहीं। एक भरोसा भर है। सदियों पुराना — हुइहै वही जो राम रचि राखा। Continue reading