मेरी चुप्पी उस डेवलपमेण्ट से डिफ़रेण्ट है जिसे मीडिया का एक सैक्शन ‘टैक्टिकल हजारे मौन’ की तरह प्रोजेक्ट करने प्राण-पण से जुटा है। समझ-दार होंगे तो, धीरे ही सही, यह डिफ़रैन्स खुद-ब-खुद समझ जायेंगे।
October 2011 archive
Oct 23 2011
ख़ुदा खैर करे!
ऐसों की कमी नहीं जो पहले तो नन्दा और दार जी की खामखां तुलना करते हैं फिर फुस-फुसाते हैं कि आज के फुसफुसे बैरम खाँ को देख कर फ़्यूचर के जिल्ले सुभानी के लिए यह दुआ निकल ही पड़ती है — ख़ुदा खैर करे!
Oct 16 2011
कॉम्पिटीशन सूप और छलनी का!
अचानक लगा जैसे बोधि वृक्ष के नीचे बैठे बिना ही बोध हो गया हो। लेकिन खुद को बोधिसत्व मान लेने तक ही अनुशासित रहूँगा। किसी ने ठीक ही कहा है बँधी मुट्ठी लाख की सार्वजनिक हो गयी तो हालत मनमोहन की!
Oct 09 2011
गली-गली में बात चली है!
कोई दार्शनिक बात नहीं थी। बस, बिटिया का कैम्पस सिलेक्शन हो गया था। बधाई के इतने सन्देश आ चुके थे कि जैसे इमरजेन्सी के हटने की खबर फैली हो। बस, यही सोचकर गुलजार की यह लाइन गुन-गुनाने का जी हो आया। Continue reading
Oct 02 2011
साला मैं तो साहब बन गया!
इस मॉडर्न समझ पर हित-ग्राहियों ने वाहवाही की इतनी तालियाँ पीटीं कि लोगों ने साफ-साफ देखा कि लकदक सफ़ेद कुर्ते-पाजामे के भीतर बिराजमान शिवराज का सीना ही नहीं, सारे अंग-प्रत्यंग तक गर्व से तन उठे थे। Continue reading