सत्ता-तन्त्र की ओर से यह घुट्टी पिलाने का प्रयास किया जा रहा है कि महिलाओं की अस्मिता की रक्षा के लिए कठोर कानून की ताजी माँग निरर्थक ‘हाय-तौबा’ है और सारा ‘हो-हल्ला’ महज टीआरपी की मीडियाई भूख की देन है। यह भी कि सरकार ‘कानून’ की समीक्षा कर रही है। राष्ट्रीय दुर्भाग्य से कोई यह पूछता नहीं दिखता कि आखिर सरकारी तन्त्र की ‘नीयत’ की समीक्षा कब होगी? Continue reading