जबकि न्यायिक विचारण और निर्णय के सारे अधिकार केवल न्याय-पालिका के सम्प्रभु विशेषाधिकार हैं, क्या सच में ही भारतीय न्याय-पालिका के सम्मान की रक्षा हुई है? या फिर, हमारी सबसे बड़ी अदालत को, अब तक के उसके इतिहास के, सबसे गम्भीर अपमान की दहलीज दिखा दी गयी है? Continue reading
March 2013 archive
Mar 09 2013
सावधान! खतरे बढ़ रहे हैं
‘प्रयोग-धर्मी’ जब सम्भावनाओं के मद में इतना चूर हो जाते हैं कि अपनी एक ‘सफलता’-विशेष के आगे उसके दुष्परिणामों के तमाम संकेतों की जान-बूझकर अनदेखी करने लगते हैं तो जाने-अनजाने वृहत्तर समाज ही ख़तरे की सूली पर लटक जाता है। ‘बेहतर चिकित्सा’ और ‘बेहतर औषधि’ के नाम पर आदमी में बीमारियाँ और गहरे बैठायी जा रही है। अब यह रहस्य नहीं रहा कि जान-लेवा एड्स ऐसे ही ख़तरों के घातक परिणामों में से एक है। Continue reading