आन्दोलन में सामाजिक सोच चाहे जितना भी गहरा हो, इस सोच को राजनीति के साँचे में कतई नहीं ढाला जा सकता है। आन्दोलन राजनीति के भटकाव को नियन्त्रित करने वाली जन-धारा है। ऐसी आदर्श स्थिति में किसी जन-आन्दोलन का सत्ता में विलोप कैसे किया जा सकता है? भले ही वह उसी के कारण अस्तित्व में आयी हो। Continue reading